हर वर्ष की भांति आज भी यानि 29 अगस्त को देश भर में हाकी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी मेजर ध्यान चंद की स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए खेल दिवस मनाया जा रहा है। मेजर ध्यानचंद को हाकी का जादूगर कहा जाता है। उनकी नजर अर्जुन की भांति हमेशा अपने लक्ष्य पर ही टिकी रहती थी और यही कारण था कि यदि गेंद उनकी स्टिक से टकरा गई तो वह सीधे गोल करके ही लौटती थी। उनकी अगुवाई में भारतीय हाकी टीम लगातार तीन बार ओलम्पिक में विजेता बनी थी। मेजर ध्यानचंद सिर्फ एक खिलाड़ी ही नहीं थे, उनमें देश प्रेम भी कूट-कूटकर भरा हुआ था। उन्हें विदेशों से भी खेलने के लिए तमाम आफर मिले, लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि को छोड़कर किसी अन्य देश के लिए खेलना गवारा नहीं किया। ऐसे महान देशभक्त के देश में खेलों के क्षेत्र में अन्य देशों की तुलना में गिरावट दिखायी पड़े तो यह देश के नीति निर्धारकों के लिए सचमुच विचारणीय विषय है।
ऐसा नहीं है कि वर्तमान समय में देश की मिट्टी में खिलाड़ियों की पौध नहीं उग रही है, बल्कि हकीकत यह है कि उस पौध को सही खाद तथा अन्य पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं। इसका उदाहरण है सिडनी में सम्पन्न हुए कॉमन वेल्थ गेम्स 2018 में महिला भारोत्तोलन में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली पूनम यादव। वाराणसी के एक किसान परिवार में पैदा हुई पूनम को खेल के क्षेत्र में मुकाम हासिल करने के लिए उनके पिता को अपनी भैंस तक बेचनी पड़ी थी। यही नहीं, ,इससे पूर्व जब सन् 2018 में ग्लासगो में संपन्न कामन वेल्थ गेम्स में पूनम ने कांस्य पदक हासिल किया था, तब लोगों को मिठाइयां खिलाने के लिए उनके परिवारजनों के पास पैसे तक नहीं थे।
यही नहीं, अभी हाल ही एशियन गेम्स में शूटिंग में स्वर्ण पदक हासिल करने वाले मेरठ के कलीना गांव के होनहार शूटर सौरभ ने जिस पिस्टल से निशाना साधकर देश को गौरव दिलाया था, वह उनके पिता ने दो साल पूर्व बैंक से कर्ज लेकर खरीदी थी। इस कर्ज की किश्तें उन्हें अभी भी बैंक को चुकानी हैं।
हमारे देश में नीति निर्धारकों की नजर खेल जगत की नई पौध पर नहीं पड़ती, बल्कि जब वह विदेशी धरती पर जब कोई मुकाम हासिल कर लेता है यानि कोई स्वर्ण या रजत पदक हासिल कर देश को गौरव दिला देता है, उस समय देश व प्रदेश की सरकारें उसके लिए इनाम स्वरूप हजारों की धनराशि की घोषणा करना अपना फर्ज समझती हैं। उन्हें यह समझ में नहीं आता है, जिस समय देश को गौरव दिलाने के लिए खेल जगत की नयी प्रतिभाएं कठिनाइयों से जूझकर आने बढ़ने का प्रयास कर रहे हों, उस समय आर्थिक रूप से तथा उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप मदद करके उनका सहारा बनें। हमारे देश के विपरीत विश्व की महाशक्ति अमेरिका व चीन में खिलाड़ियों की नयी पौध तैयार करने के लिए वहां की नीतियां उतनी ही गम्भीर हैं, जितनी कि शिक्षा तथा अन्य क्षे़त्रों में। यही कारण है कि इन देशों में हर वर्ष खेल के क्षे़त्र में उत्कृष्ट खिलाड़ी निकल कर सामने आते हैं, जबकि हमारे देश में खेल के क्षेत्र में स्थितियां बिल्कुल विपरीत है।
कहना न होगा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी नीतियां निर्धारित की जायं, जिनसे खेलों को सम्मानित दर्जा हासिल हो सके। खेलों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने तथा खिलाड़ियों की आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें सुचिधाएं उपलब्ध कराये जाने की भी महती आवश्यकता है। जिस तरह शिक्षा तथा विज्ञान के क्षेत्र में शोधार्थियों को आर्थिक मदद व छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है, उसी तरह खेल के क्षेत्र में भी लगन से काम करने वाले तथा आगे बढ़ने का प्रयास करने वाले खिलाड़ियों को स्टाइपेंड देकर उनकी आर्थिक मदद करनी होगी, तभी खेल दिवस की सार्थकता और हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद को सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी।
-राजेश अवस्थी